Saturday 25 July 2015

इन 'राजद्रोही' कार्पोरेट मालिकों को गिरफ्तार करो....


सवाल ये नहीं है कि यह दस हजार करोड़ का घोटाला है या दस लाख करोड़ का. असली बात ये है कि ये कार्पोरेट जासूसी है--पेट्रोलियम मंत्रालय से लेकर कोयला और बिजली मंत्रालय होते हुए रक्षा मंत्रालय तक फैला हुआ. थोड़ी और छानबीन हो जाएं, तो कोई भी मंत्रालय बेदाग़ नहीं बचेगा. और ये जासूसी इस देश की कार्पोरेट कम्पनियां ही कर रही है, जिनकी विदेशी पूंजी के साथ सीधी मिलीभगत है. इसलिए इस जासूसी से जो भी बातें लीक हुई है, वह विदेशी हाथों तक भी पहुंची ही होगी. हमारे ये 'देशभक्त' कार्पोरेट इस देश की सुरक्षा संबंधी गोपनीय तथ्यों को विदेशी हाथों को भी बेच रहे हैं.
और क्या यह संभव है कि ऐसी जासूसी इस देश की कार्पोरेट कंपनियों के मालिकों की जानकारियों के बिना हो रही है, जिन्हें इस जासूसी से हजारों करोड़ का सीधा फायदा हो रहा है? क्या ये केवल इन कार्पोरेट कंपनियों के मैनेजर, डीजीएम या सीनियर एग्जीक्यूटिव की ही सनक थी?? दस्तावेजों तक ये सेंधमारी क्या केवल कुछ कर्मचारियों का ही कमाल है???
देश की सुरक्षा और गोपनीयता से खिलवाड़ करने वाले इस जासूसी कांड का पर्दाफाश होना जरूरी है-- और यह तभी हो सकता है, जब इन कार्पोरेट मालिकों को भी गिरफ्तार किया जाएं और इन पर 'राजद्रोह' का मुक़दमा कायम किया जाएं. इनकी गिरफ़्तारी के बिना इस जासूसों कांड के तार बेनकाब नहीं हो सकते, इस कांड में जिन उच्चपदस्थ अधिकारियों व राजनेताओं की संलिप्तता है, वह सामने नहीं आ सकती है.
लेकिन लगता है कि कुछ छोटे पुर्जों को ही निशाना बनाकर पूरे मामले को ही रफा-दफा कर दिया जायेगा. कार्पोरेट पूंजी के बल पर टिकी मोदी सरकार और संघी गिरोह इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकती. इनकी कथित 'देशभक्ति' को यही पर तार-तार होता हुआ हम देख सकते हैं.

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