Saturday 25 July 2015

छत्तीसगढ़: ‘संगठित अपराध’ में बदलता भ्रष्टाचार


केन्द्र व अन्य राज्य सरकारों के समान ही छत्तीसगढ़ में भी प्याज के छिलकों की तरह भाजपाई घोटालों की परतें खुल रही हैं और इसके छींटें मुख्यमंत्री व उनके परिवारों के दामन को दागदार बना रहे हैं। ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टाॅलरेंस’ के वादे और दावे हवा-हवाई हो चुके हैं। ‘स्वच्छ प्रशासन’ का मुखौटा तार-तार हो चुका है। प्रशासन के जिस विभाग में हाथ डालो, घोटाला ही घोटाला। भ्रष्टाचार अब ‘संगठित अपराध’ में बदल गया है।
जिस कृषि संकट से छत्तीसगढ़ गुजर रहा है उसका पता केवल इससे ही चलता है कि पिछले 11 सालों के भाजपाई राज में 20 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्यायें की हैं। कारण बहुत ही स्पष्ट है-- मौसम की मार से फसल की बर्बादी, समर्थन मूल्य पर खरीदी न होना तथा ऋणग्रस्तता। लेकिन फसल बर्बादी का कोई मुआवजा किसानों को नहीं मिला, पर निजी बीमा कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपयों का मुनाफा कमाया। धान खरीदी से लेकर मीलिंग तथा चावल वितरण तक नेताओं, ठेकेदारों, मिलरों व अफसरों- सबने खूब पैसा बनाया और भाजपा राज में 36 हजार करोड़ रुपयों के घोटालों की बात सामने आ रही है। इस घोटाले में पकड़ी गई डायरी में लिखी जानकारी के अनुसार, यह रकम ‘मैडम सीएम’ तक पहुंची है और इसी पैसे से पिछले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के एक उम्मीदवार को मैदान से हटाकर भाजपा के संघी कार्यकर्ता उम्मीदवार की जीत को सुनिश्चित किया गया। पूरी डायरी सार्वजनिक है, लेकिन कोर्ट में डायरी के चंद पन्ने ही पेश किये गये। जिन आरोपी अधिकारियों-कर्मचारियों के घरों से करोड़ों रुपये पकड़ाये, वे ‘सरकारी गवाह’ बना दिये गये हैं। एन्टी करप्शन ब्यूरो राज्य सरकार के तोते की तरह काम कर रहा है, जबकि इस सरकार के कम से कम दो दर्जन आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारियों पर भ्रष्टाचर के आरोपों की जांच चल रही है, जिनके पास कम से कम 10-10 करोड़ की दौलत निकली हैं। इसी के साथ छ.ग. में भी एक ‘व्यापमं घोटाले’ के चिन्ह नजर आने लगे हैं।
मोदी सरकार की मंशा के अनुरुप इस वर्ष मनरेगा के काम पूरे प्रदेश में ठप्प हैं, लेकिन पिछले वर्ष की ही लगभग 45 लाख मजदूरों की 600 करोड़ रुपयों से अधिक की मजदूरी बकाया है। बकाया मजदूरी पिछले 6 माह से दो वर्ष तक की अवधि की है। अब पंचायतों के पदाधिकारी बदल गये हैं और काम करवाने वाले अफसर भी, इस बकाया मजदूरी के मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
पीडीएस व्यवस्था में भयंकर कटौती हुई है और 40 लाख परिवारों को आज पहले के तुलना में प्रति परिवार कम अनाज मिल रहा है। 2 हजार करोड़ रुपयों की सब्सिडी यह सरकार बचा रही हैै आम जनता को कुपोषण के गड्ढे में धकेलकर। आदिवासी क्षेत्रों में जिस ‘मुफ्त’ नमक वितरण का शोर मचाया गया, वह घटिया, आयोडीनरहित, बदबूदार नमक साबित हुआ और खाद्य विशेषज्ञ इसे जहरीला बता रहे हैं। भाजपा राज में 7.71 लाख टन ऐसे नमक का वितरण किया गया है। यह पूरा घोटाला 7-8 सौ करोड़ रुपयों का है।
गांव में काम न मिलने, राशन में कटौती होने तथा भूमिहीनता-- यह सब मिलकर भुखमरी पैदा कर रहे हैं। सरगुजा व बिलासपुर जिलों से भूख से दर्दनाक मौतों की घटनायें सामने आई हैं।
जो बिजली प्रदेश सरकार 2.71 रुपये की औसत लागत से पैदा करती है, वह इसे 5.10 रुपये प्रति यूनिट की औसत दर से बेच रही है। इतना भारी मुनाफा कमाने के बाद भी बिजली कंपनियां घाटे का रोना रो रही हैं और सरकार खामोश है, तो मतलब साफ है कि घोटाला चालू आहे।
भूमि अधिग्रहण सबसे बड़ा मुद्दा बन रहा है। आंध्रप्रदेश में बन रहे पोलावरम परियोजना से 25 हजार लोगों के विस्थापित होने और समूचे सुकमा कस्बे के डूबने की आशंका है। उत्तरप्रदेश में कन्हर नदी पर बांध बनाया जा रहा है और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के 27 गांव प्रभावित हो रहे हैं। बस्तर में डिलमिली में लौह उद्योग स्थापना का प्रयास जारी है, जिसके लिए आदिवासियों को विस्थापित किया जाएगा। इस प्रस्तावित प्लांट क्षेत्र की 4 हजार एकड़ जमीन नेताओं-अफसरों-व्यापारियों ने पानी के भाव, 5 हजार रुपये प्रति एकड़, के भाव से खरीदकर रख ली है।
शिक्षा के युक्ति युक्तकरण के नाम से प्रदेश के 3 हजार सरकारी स्कूल बंद कर दिये गये हैं। अधिकांश स्कूल आदिवासी क्षेत्रों के हैं। 1.5 लाख बच्चे शिक्षा क्षेत्र से बाहर हो गये हैं। इनमें अधिकांश आदिवासी व छात्राएं हैं। इन क्षेत्रों में अब संघी स्कूलों को खोलने की तैयारियां की जा रही हैं, जो बच्चों को अवैज्ञानिक शिक्षा देने का ‘महान’ काम करेंगे।
प्रतिभाशाली आदिवासी बच्चों को सरकारी खर्च पर अच्छी शिक्षा देने की योजना का बड़ा ढोल पीटा गया, लेकिन उन्हें फर्जी निजी स्कूलों में भर्ती किया गया, जिनके मालिक इन बच्चों से अपने घर में बर्तन मंजवाने का काम करवा रहे हैं। राजधानी रायपुर में ही ऐसे तीन बच्चों को छुड़वाया गया है, जिन्हें बंधुआ बनाकर रखा गया था। ऐसे फर्जी निजी स्कूलों को प्रति छात्र 75 हजार रुपये फीस के रुप में दिये जा रहे हैं, जबकि यह निजी स्कूल आरटीई कानून तक लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं।
साफ है कि छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार न केवल आर्थिक रुप से, बल्कि नैतिक रुप से भी भ्रष्ट साबित हुई है। लेकिन इसका विकल्प वामपंथी एकता पर आधारित जनसंघर्षों के विकास से ही विकसित हो सकता है। विकल्प होने के कांग्रेस के दावे को तो आम जनता लगातार तीन बार ठुकरा ही चुकी है।

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