Saturday 25 July 2015

वादा तो है रोजगार देने का, लेकिन काम...?


इस देश में कृषि का क्षेत्र सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है, जहां 50% श्रमशक्ति नियोजित है. लेकिन निवेश किया जाता है मात्र 4%. इसके बाद छोटे और मझौले उद्योग 44% रोजगार देते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में भी निवेश होता है मात्र 16%. बड़े उद्योगों में 80% निवेश हो रहा है, जो केवल 6% रोजगार पैदा कर रहे हैं.
इसलिए फेंकू महाराज, देश के लोगों को रोजगार देने की चिंता है तो कृषि व लघु-मध्यम उद्योगों में निवेश करो, इसके लिए योजना बनाओ. लेकिन यहां तो बड़े उद्योग-धंधों में निवेश के लिए एफडीआई को न्यौता जा रहा है !!
किसी भी देश में विदेशी पूंजी स्वदेशी लोगों को रोजगार देने नहीं जाती, केवल मुनाफा कमाने जाती है. यह मुनाफा वह अपनी उन्नततम तकनीक, सस्ते श्रम, श्रम कानूनों के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के जरिये ही अर्जित करती है. जितना अधिक वह आम जनता के श्रम को लूटेगी, उसका मुनाफा भी उतना ही बढेगा. यही कारण है कि 1991 के बाद उदारीकरण की जिन नीतियों को हमारे देश में लागू किया गया, उससे पूंजीपतियों का मुनाफा तो बढ़ा, सकल घरेलू उत्पाद में तो वृद्धि हुई, लेकिन न जनता को रोजगार मिला और न उसकी आय व क्रय-शक्ति में इजाफा हुआ. पूरा विकास 'रोजगारहीन विकास' का दौर रहा. आपका ' मेक इन इंडिया' बेरोजगारी को बढ़ाने और भारत को बर्बाद करने का अभियान है, न कि भारत को बनाने का.
उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों ने 94% रोजगार देने वाले कृषि व लघु-मंझोले क्षेत्र को तबाही के कगार पर पहुंचा दिया है. अब 'मेक इन इंडिया' के रैपर में लिपटी यही नीतियां इस क्षेत्र का सत्यानाश करने और देश की आर्थिक गुलामी को सुनिश्चित करने का काम करने जा रही है.
फेंकू महाराज, जिस आदमी को हमारे देश की अर्थव्यवस्था की बुनियादी समझ नहीं है, उसे इस देश का प्रधानमंत्री रहने का भी कोई हक नहीं है.

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