Saturday 25 July 2015

मौत बांटने वाली नीतियां


नव-उदारीकरण की नीतियां भूख का साम्राज्य स्थापित करती है. यह अनुभव सभी विकासशील देशों का है. भारत का भी यही अनुभव है. मोदी राज में इस अनुभव का केवल विस्तार हो रहा है. वे दीदादिलेरी से खैरात बांटने में व्यस्त है...और इधर किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर.
भूख से मरने की खबर अब छत्तीसगढ़ के किये भी नई नहीं रही. यह वही 'धान का कटोरा' है, जो आज राख के ढेर में तब्दील हो रहा है...और इसके लिए कांग्रेस-भाजपा सरकारों की अंधाधुंध औद्योगीकरण की नीतियां ही जिम्मेदार है. आज लगभग 2000 किसान आत्महत्या कर रहे है. इनमें आदिवासी हैं, दलित हैं और अन्य वर्गों के गरीब भी. ये सभी आत्महंता भूख के ही शिकार होते हैं. गांवों में चले जाइए, सरकारी रिपोर्ट की सच्चाई सर चढ़कर बोलेगी कि आधे से ज्यादा महिलायें और बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. सभी एक धीमी मौत की ओर बढ़ रहे हैं.
इसलिए सरगुजा में एक बच्चे की भूख से हुई मौत में नया कुछ नहीं है. लेकिन बेशर्म भाजपा सरकार इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट चीख-चीख कर कह रही है कि बच्चे की मौत भूख से हुई. इतना भूखा था वह कि उसकी अंतड़ियां भी सूख चुकी थी. लेकिन प्रशासन है कि उसे लू से हुई मौत सिद्ध करने में लगा है. कल अखबारों के पन्नों पर यही बहस होगी कि बच्चे की मौत भूख से हुई या लू से? लू से हुई, तो यह ठीक वैसी ही प्राकृतिक आपदा है, जिसकी कहर में कुछ दिनों पहले 65 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और एक मजदूर की मौत भी. वे सब बेचारे मोदी की सभा के लिये डोम बनाने में लगे थे....लेकिन मोदी को इतनी भी फुर्सत नहीं थी कि घायलों को ही देख आते. और रमन सरकार तो कमिशनखोर भाजपाई ठेकेदार को बचाने में ही जुटी है.
सवाल फिर भी होगा कि ऐसी कौन सी मुसीबत थी कि बच्चे का पिता अपने बच्चों के साथ पलायन करने के लिए मजबूर हुआ? उसे गांव में ही उस मनरेगा में काम क्यों नहीं मिला, जिसका ढिंढोरा यह सरकार जोर-शोर से पीटती रही है? इस बच्चे के पेट में अन्न के इतने भी दाने क्यों नहीं थे कि लू से बचाव हो पाता, जबकि छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए कांग्रेस सरकार ने भी उसे पुरस्कृत किया था?
स्पष्ट है कि मोदी राज के एक साल में छत्तीसगढ़ में भी रोजी-रोटी के मामले में भयंकर गिरावट आई है. यह गिरावट सीधे केन्द्र की नीतियों से जुडती है, जो मनरेगा जैसे रोजगार पैदा करने वाली योजना को बंद करने का इरादा रखती है. फिर फण्ड आबंटन कहां होना है? प्रदेश के 40 लाख मजदूरों की पिछले वर्ष की मजदूरी बकाया है और इस वर्ष काम बंद है, तो केवल इसलिए कि फण्ड नहीं है. यह गिरावट सार्वजनिक वितरण प्रणाली से भी जुडती है, जहां गरीबों से जबरदस्ती राशन कार्ड छीन लिए गए हैं और जिनके पास हैं, उनमें से 50 लाख परिवारों को पिछले वर्ष की तुलना में कम अनाज दिया जा रहा है....और ऐसी सीधी गिरावट इसलिए पैदा की जा रही है कि बाज़ार में उछाल आये!! यही इस सरकार की अर्थनीति है, जिस पर पूरा कार्पोरेट जगत बल्ले-बल्ले है.
इसलिए गरीबों का विकास अलग होता है, अमीरों का विकास अलग. मोदी का 'विकास' उन अमीरों का विकास है, जो इस देश के गरीबों को रौंदकर हो रहा है. इसलिए गरीबों को अपना विकास करना है, तो मोदी के विकास, उसकी अमीरपरस्त नीतियों के खिलाफ लड़कर ही किया जा सकता है....और यही वर्ग-संघर्ष है, जिससे पूरे संघी गिरोह को चिढ है

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