Saturday 25 July 2015

जिस फसल को कांग्रेस ने बोया है, भाजपा उसी को काट रही है....


महाराष्ट्र में मुस्लिमों की आबादी राज्य की समूची आबादी का मात्र 10% ही है, लेकिन वर्ष 1998-2000 के बीच यहां साम्प्रदायिक तनावों/दंगों की सबसे अधिक 1192 घटनाएं रिकॉर्ड की गई है, जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्णाटक, बिहार और ओड़िशा इससे नीचे थे. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1999-2013 के बीच देश में पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौतों की 1418 घटनाएं दर्ज हुई है, और इसका 23% --याने 326 मौतें महाराष्ट्र में ही हुई है. इनमें से अधिकाँश अल्पसंख्यक समुदाय से ही संबंधित थे. महाराष्ट्र के जेलों में 32% लोग मुस्लिम ही है. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि कथित रूप से ' धर्मनिरपेक्ष ' कांग्रेस-एनसीपी राज में भी महाराष्ट्र का समाज किस हद तक साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत हो चुका है.
1990 के दशक की शुरूआत में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुंबई में बड़े प्रायोजित तरीके से दंगों का आयोजन किया गया था. इन दंगों पर श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट भी आ चुकी है, जिसमे संघी गिरोह को जिम्मेदार ठहराया गया है. लेकिन इस रिपोर्ट को कहीं गहरे में दफना दिया गया और किसी भी सरकार ने कोई भी कार्यवाही नहीं की. सच्चर आयोग की रिपोर्ट को भी महाराष्ट्र में लागू नहीं किया गया, जिसने महाराष्ट्र में मुस्लिमों की बदहाली को सामने लाने का काम किया था. कांग्रेस-एनसीपी गंठजोड़ ने इस मामले में अपने चेहरे पर कालिख ही पोतने का काम किया है.
भ्रष्टाचार के मामले में तो कांग्रेस-भाजपा में कोई अंतर ही नहीं है. दोनों एक-दूसरे से होड़ ही लेते दिखते हैं. यही हाल अमेरिकापरस्त उदारीकरण की नीतियों को लागू करने के मामले में है, जहां कांग्रेस की जगह अब भाजपा ने ले ली है. महाराष्ट्र में चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद एनसीपी के रूख ने फिर यही साबित किया है कि ये पूंजीवादी पार्टियां केवल सत्ता की लालची होती है और इनका बुनियादी संवैधानिक व नैतिक मूल्यों से कोई लेना-देना नहीं होता !!
कांग्रेस ने अपने राज में जिस फसल को बोया था, भाजपा आज उसी को काट रही है. महाराष्ट्र में साम्प्रदायिक ताकतों की बढ़त के लिए कांग्रेस के सिवा और कौन जिम्मेदार हो सकता है ?

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