Saturday 25 July 2015

क्या मोदी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने का साहस है ?


उन्होंने बिजली बनाने के लिए कोल ब्लाक लिया, लेकिन बिजली नहीं बनाई. उन्होंने लोहा का कारखाना लगाने के लिए कोल ब्लाक लिया, लेकिन कारखाना नहीं लगाया. उन्होंने सीमेंट उत्पादन के लिए कोल ब्लाक हथियाया, लेकिन सीमेंट का उत्पादन भी नहीं किया. केवल कोयला खोदा और लागत मूल्य से कई गुना ज्यादा भाव पर बाज़ार में बेचा और लाखों करोड़ रूपये मुनाफे में कमाए.
कोयला खोदने के लिए उन्होंने आदिवासियों को भगाया, उनके खेत और घर छीने और कोई मुआवजा भी नहीं दिया. उन्होंने जंगलों का सत्यानाश किया और पर्यावरण को बर्बाद किया. उन्होंने अनुसूचित क्षेत्रों में लागू तमाम संवैधानिक प्रावधानों को कुचला और संविधान को रद्दी किताब में बदल दिया.
बहुतों ने तो कोयला भी नहीं खोदा. इन कोल ब्लाकों को हथियाकर उन्होंने अपनी कंपनियों के शेयरों के भाव बढवाए. कुछ ने तो अपने लाइसेंस ही बेच दिए और भारी धनराशि बटोर ली....और यह सब किया अपने अकूत मुनाफे के लिए.
अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. यह सब आबंटन हुए थे पैसों के बल पर और राजनैतिक पहुँच के आधार पर. चाहे कांग्रेस हो या भाजपा की सरकारें, किसी ने भी अपना ' दिमाग ' लगाने का काम नहीं किया. सबने इन पूंजीपतियों के गुलामों की तरह ही काम किया. इसलिए ये आबंटन अवैध हैं.
चूंकि ये आबंटन ही अवैध है, इसलिए इसके बाद की सारी प्रक्रियाएं ही अवैध हैं, चाहे वे किसी भी पक्ष द्वारा की गई हो. इसलिए कोयला बेचना गलत था और इसे बेचकर मुनाफा कमाना भी. इसलिए आदिवासियों का विस्थापन गलत था और जंगलों को काटकर पर्यावरण को बर्बाद करना भी. इसलिए संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन भी गलत था. ये तमाम गलत काम 'अपराध ' की श्रेणी में आते हैं और इन अपराधों के लिए इन लोगो पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिये और उनकी कमाई और मुनाफे को जब्त किया जाना चाहिए. केवल यही नहीं, आदिवासियों के पुनर्वास और पर्यावरण बहाली का खर्च भी इन्हीं लोगों से वसूल किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का यही अर्थ है और इस आदेश को इसी तरह क्रियान्वित किया जा सकता है. लेकिन टाटा-अंबानी-अडानी-जिंदल-वेदांता की गुलाम मोदी सरकार में यह सब करने का साहस है ?

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