Saturday 25 July 2015

फेंकू महाराज, ज़रा अपने गवर्नर की ही सुन लो...


रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने निर्यात आधारित 'मेक इन इंडिया' की जगह घरेलू उपभोग में वृद्धि पर आधारित 'मेक फॉर इंडिया' का विकास मॉडल सुझाया है. फिक्की के व्याख्यान माला में उन्होंने कहा है कि एफडीआई को आकर्षित करने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार नहीं हैं और इसके लिए देश के हितों के साथ समझौता नहीं किया जा सकता. निर्यात आधारित विकास की रणनीतिके खिलाफ बोलते हुए उन्होंने निर्यातकों को बेशुमार सब्सिडी देने का भी विरोध किया है और कहा है कि वर्त्तमान परिस्थितियों में विकास का यह मॉडल काम करने वाला नहीं है. इसकी जगह उन्होंने घरेलू बाज़ार के विस्तार पर जोर दिया है.
यही बात तो वामपंथ बार-बार कह रहा है. लेकिन घरेलू बाज़ार का विस्तार करना है, तो नवउदारवादी वैश्वीकरण की नीतियों से नाता तोडना होगा. 'मेक फॉर इंडिया' के मॉडल को स्थापित करना है, तो विकास की चिंता के केन्द्र में गरीबों को लाना होगा, कृषि क्षेत्र तथा समाज कल्याण की योजनाओं को बढ़ावा देना होगा, ताकि आम जनता की क्रय-शक्ति बढ़ें और औद्योगिक मालों की मांग बढे. लेकिन इसके लिए विदेशी कंपनियों और कार्पोरेटों के मुनाफों पर चोट करनी होगी.
फेंकू महाराज, वामपंथ की न सही, ज़रा अपने गवर्नर की ही सुन लो, तो देश का कुछ भला हो!!

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