Saturday 25 July 2015

गाँधी का नाम लेकर सफाई का नाटक

फेंकू महाराज, कचरा केवल वही नहीं है, जो हमारे घरों से निकलता है और जिसकी सफाई का नाटक आज तुमने किया है. इस देश-दुनियां में सबसे ज्यादा कचरा तो वो पूंजीपति और साम्राज्यवादी देश व कार्पोरेट कम्पनियाँ फैला रही हैं, जिन्होंने अपने मुनाफे की हवस में पर्यावरण और जैव-विविधता को नष्ट कर दिया है, जो जंगलों को काट रहे हैं और प्राकृतिक संपदा पर कब्ज़ा कर रहे है, जो अपने कारखानों का गन्दा पानी नदियों में डाल रहे है और उसकी राख आदिवासियों की जमीन पर उड़ेलकर उसे बंजर कर रहे हैं, जो तय मानकों का पालन किये बिना, क़ानून को अपने पैरों तले कुचल रहे हैं और जिनको तुम रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत का लालच दे रहे हो.
तुम्हारी गंगा-जमुना के अपवित्र होने का यही कारण है. इस देश की बीमारियों का भी यही कारण है. यही कारण है हमारे देश की जलवायु के गड़बड़ होने का. इस देश के पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और आदिवासी समुदायों की विलुप्ति का भी यही कारण है. इस गड़बड़ी को झाड़ू बुहारकर दूर नहीं किया जा सकता और ना रामदेवी योग से, जैसा तुमने संयुक्त राष्ट्र संघ में सुझाया है.
यदि थोड़ी सी भी ईमानदारी बची हो, तो अपनी कार्पोरेटपरस्त नीतियों को बदलो. धनी देश जो पर्यावरण बिगाड़ रहे हैं, उन पर रोक लगाने की मांग करो, यूनियन कार्बाइड जैसी जो कम्पनियाँ इस देश का सत्यानाश कर रही हैं, उन्हें बंद करवाने का काम करो, देशी-विदेशी जो कम्पनियाँ हमारे देश को लूटने के लिए आ रही हैं, उन्हें रोको, गरीबपरस्त नीतियों पर अमल करो और उनकी भलाई के लिए अमीरों पर टैक्स लगाओ, गरीबों को सब्सिडी दो.
है ऐसा करने की हिम्मत? यदि नहीं, तो गाँधी का नाम लेकर सफाई का नाटक करने की जरूरत नहीं...सब लोग देख रहे हैं कि जिस गाँधी ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद का डटकर मुकाबला किया, उन्हीं के हत्यारे गिरोह का प्रधानमंत्री किस तरह अमेरिकी साम्राज्यवाद के चरणों में नतमस्तक है और उसकी कंपनियों को देश लूटने के लिए बुला रहा है.

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