Saturday 25 July 2015

सेंसेक्स बड़ा या ह्यूमन इंडेक्स?


5 देशों के ब्रिक्स संगठन में भारत की यदि किसी से कोई टक्कर है, तो वह है-- दक्षिण अफ्रीका, जो हाल-फिलहाल ही स्वतंत्र हुआ है. जनसंख्या के मामले में भारत का स्थान भले ही चीन के बाद हो, लेकिन मानव विकास सूचकांक के मामले में वह सबसे नीचे है 0.554 के अंक के साथ, जबकि दक्षिण अफ्रीका का भी अंक 0.629 है. औसत उम्र के मामले में भी भारत केवल अफ्रीका से ही आगे है, जबकि ब्राज़ील के नागरिक भारतीय नागरिक की तुलना में औसतन 10 साल ज्यादा जीते हैं. शिक्षा-दर के मामले में तो भारत नीचे से पहले स्थान पर ही है.

सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) एक और पैमाना है विकास को नापने का, जिसका जोर-शोर से उपयोग यहां की सरकार करती है. लेकिन वैश्विक पैमाने पर भारत यहां भी फिसड्डी है और 120 करोड़ जनसंख्या वाला भारत केवल 1824.8 बिलियन डॉलर जी डी पी पैदा करता है और इस मामले में भी वह केवल दक्षिण अफ्रीका से ऊपर, चौथे स्थान पर है. लेकिन प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में यहां अफ्रीका ने भी भारत को पछाड़ दिया है. चीन और अफ्रीका में प्रति व्यक्ति जी डी पी क्रमशः 9161 तथा 11375 डॉलर है, तो भारत में मात्र 3829 डॉलर. ब्राज़ील और रूस तो खैर भारत से ऊपर है ही.

विश्व के पैमाने पर अपने पिछड़ेपन का अहसास दक्षिण अफ्रीका को है और इससे उबरने के लिए वह अपनी जी डी पी का लगभग 25% सरकारी खर्च के रूप में करता है; ताकि शिक्षा, रोजगार, आवास, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी मानवीय सुविधाओं का इंतजाम किया जा सके. ब्राज़ील का सरकारी खर्च अपनी कुल जी डी पी के 31% से ज्यादा है. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी तमाम शेखियों के बावजूद भारत की वास्तविकता यही है कि यहां का सरकारी खर्च कुल जी डी पी का मात्र 15% ही है.

प्राकृतिक संसाधन और मानवीय क्षमता किसी भी देश की ताकत होती है. लेकिन दिवंगत कांग्रेस की सरकार हो या अभी की भाजपा सरकार, इनके लिए मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन इंडेक्स) से ज्यादा अहमियत सेंसेक्स की रही है, जिसका निर्धारण लुटेरी देशी-विदेशी पूंजी और सटोरिया बाज़ार करता है. इस बेहूदे अर्थ-शास्त्र का ही नतीजा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सहस्त्राब्दी विकास रिपोर्ट ये बता रही है कि विश्व की कुल निर्धनतम आबादी की एक-तिहाई भारत में रहती है (--और अगर यह सच है तो ये आंकड़े मोदी सरकार द्वारा हाल में घोषित आंकड़ों से बहुत ज्यादा है--), दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत में बाल मृत्यु दर सबसे ज्यादा है तथा 0-5 आयु वर्ग के 14 लाख से ज्यादा बच्चे हर साल मर जाते है और हमारी युवा आबादी का 20% बेरोजगारी का दंश झेल रहा है.

ब्रिक्स के सम्मलेन में जब मोदी विश्व-नेताओं से हाथ मिला रहे थे, तो क्या उन्हें यह अहसास था कि यह हाथ कितना कमजोर और कुपोषित है? लेकिन शायद ऐसा अहसास उन्हें नहीं था और यही भारत का दुर्भाग्य माना जायेगा.

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