Saturday 25 July 2015

आओ कारपोरेटों, हम ढोयेंगे पालकी, यही हुई है राय संघी गिरोह की...


इस देश का बजट तो बनता ही है कार्पोरेटों द्वारा, कार्पोरेटों और विदेशियों के लिए. अतः उनसे क्या छुपाना! बजट की 'पवित्र' गोपनीयता तो पब्लिक के लिए होती है, सो लीक्ड बजट अब भी पब्लिक से गोपनीय है.इसी 'लीक्ड' बजट को कारपोरेटों के सरताज संसद में रखेंगे.यह वही संसद है, जिसमे घुसने से पहले फेंकू महाराज ने अपनी नाक रगड़ी थी और घुसने के बाद उसकी नाक काटते देर नहीं लगाई.
तो दोस्तों, जासूसी हो गई, तो हो गई. बजट लीक हो गया, तो हो गया. इसमें घबराने की क्या बात है! जिसके लिए लीक होना था, उसके लिए ही लीक हुआ. वे अब इस देश पर थोडा और दबाव डालेंगे कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने के लिए कुछ लाख करोड़ रुपयों की थोडा और रियायत दो, तो अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए यह अच्छा ही है.पब्लिक को तो पता चल ही जायेगा. यदि उसके लिए लीक हो जाता, तो मांगती भी क्या वह?....माई-बाप, पेट्रोल-डीजल की कीमत कम कर दे! माई-बाप, मुझ पर लग रहे टैक्स के बोझ में कुछ हजार की राहत दे दे!! माई-बाप, चावल-गेंहू, दाल-शक्कर सस्ता कर दे!!! माई-बाप, मेरी पैदावार का समर्थन मूल्य दे दे!!!! माई-बाप, जमीन मत छीन, मुझे जमीन का पट्टा दे दे!!!!!....बताओ, यह भी कोई मांगना हुआ? ऐसी मांग तो वह 67-68 सालों से कर ही रही है, बजट के बाद फिर कर लेगी. इसके लिए इतनी हाय-तौबा क्यों?? उसके पास इतना जिगर कहां और कहां ऐसी मज़बूत छप्पर कि लाखों करोड़ की रियायत मांगे???
और जिस तरह यह बजट लीक होना था, उसी तरह हुआ, गरिमामय ढंग से, जासूसी के जरिये. वरना बताओ, बजट चोरी हो जाता, तो दुनिया में हम किसको मुंह दिखने लायक रहते? दुनिया हम पर हंसती नहीं कि देखो हम चोरी भी रोकने के काबिल नहीं!! अब हम कह सकते हैं कि जिस जासूसी पर अमेरिका का बस नहीं, वहां हम कौन होते है जासूसी रोकने वाले?....और हम तो बुला ही रहे हैं कारपोरेटों को, बुला ही रहे हैं ऍफ़डीआई और अमेरिका को कि आओ, हमारे घर में सेंध लगाओ. हम अपनी चोरी का माल वापस लेंगे, बदले में अपना पूरा घर सौंपेंगे.हम तो तुम्हारी पालकी ढोने के लिए ही पैदा हुए हैं. इसलिए आओ, तुम्हारी जासूसी और पलक-पांवड़े हमारे.
आओ रिलायंस, पूरा बजट तुम्हारा. आओ एस्सार, पूरा खजाना तुम्हारा. आओ केयन्स इंडिया, पूरा भारत तुम्हारा. आओ जुबिलेंट, पूरी एनर्जी तुम्हारी. तुम सब तो हमारे देश की आत्मनिर्भरता के प्रतीक हो, चाँद-तारे-सितारे हो. तुम्हीं सब तो हमारी पार्टी-फण्ड के अमूल्य स्रोत हो. न होता तुम्हारा फण्ड, न होती तुम्हारी प्रचार तंत्र की ताक़त, तो कहां रहते हम? इसलिए लो, तुम्हारे चरणों में यह बजट समर्पित.
जोर से बोलो-- संघी गिरोह की जय, कार्पोरेटों की जय-जय.

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