Sunday 9 August 2015

चीनी लॉबी के अच्छे दिन तो आ ही गए...


जब पूरी सरकार बाजारवादी अर्थव्यवस्था को ही आगे बढ़ा रही है,तो उसके हर फैसले का फायदा बाजार ही उठाएगा. गरीब आदमी की तो केवल जेब ही कटनी है. चीनी के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है.
चीनी का स्टॉक देश में पर्याप्त मात्रा में है, इसके बावजूद चीनी का देश में धड़ल्ले से आयात हो रहा है, तो इसलिए कि यहाँ के पूंजीपतियों को वैश्विक बजार में चीनी सस्ती मिल रही है. वे विदेशों से सस्ता खरीद रहे हैं,देश में महंगे-से-महंगा बेच रहे हैं--ऐसा इसलिए किज्यादा-से-ज्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सके. हमारे देश के पूंजीपतियों को ऐसा करने का मौका भी भाजपा की स्वनामधन्य अटल सरकार ने ही दिया था, जिसने 1500से ज्यादा खाने-पीने की वस्तुओं के आयात पर लगे मात्रात्मक पाबंदी को एक झटके में हटा दिया था.
अब इस आयात को रोकने के नाम पर मोदी ने आयात शुल्क 15% से 40% कर दिया है-- इस से आय्यात पर रोक लगे या न लगे, लेकिन घरेलू बाजार में चीनी अज से ही 3 रूपये किलो महंगी जरूर हो गयी है--याने चीनी लॉबी को 7000 करोड़ का उपहार! चीनी निर्यात पर 3300 रूपये प्रति टन की सब्सिडी (!)--बेचारे कितने गरीब हैं हमारे उद्योगपति !--वे अलग से बटोरेंगे.
जिन उद्योगपतियों ने गन्ना किसानों के 11000 करोड़ रूपये डकार लिए हैं, अब उन्हें ही 4400 करोड़ का ब्याजमुक्त ऋण दिया जाएगा, ताकि वे गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर सकें. अब वे कितना भुगतान करेंगे...और किसान और कितना भुगतेंगे, ये तो मोदी और उनके राम ही जाने!
इए कहते हैं--पाँचों उंगली घी में और सर कढ़ाही में होना. पहले गन्ना पैदा करने वाले किसानों को लूटो, फिर उनके बकाया भुगतान के नाम पर ब्याजमुक्त कर्जा दकारो, फिर चीनी निर्यात में सब्सिडी बटोरो...और फिर आयात शुल्क वृद्धि के नाम पर जनता को निचोड़ो!
4400 करोड़ का मुफ्त ऋण और 7000 करोड़ रूपये की कमाई घरेलू बजार से!--तो इन उद्योगपतियों को किसानों का गन्ना मुफ्त में ही मिल रहा है-- जनता की जेब में डाका डालने से!! इस डकैती में कांग्रेस और भाजपा -दोनों से जुड़े पूंजीपति सामान रूप से लाभान्वित हो रहे हैं.
मोदी के 'रामराज' में पूंजीपतियों के 'अच्छे दिन' आने ही थे -- जनता के लिए तो केवल महंगाई की 'कड़वी दवा' है, जिसे अच्छे दिनों की 'आस' में जबरदस्ती वह अपने हलक से नीचे उतारेगी.

No comments:

Post a Comment