Monday 5 December 2016

चमरू का 'काला' और अंबानी का 'सफ़ेद' !?


नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के इतने नोट बरसे, जिसकी आशा मोदी ने नहीं की थी. काले धन को रद्दी के टुकड़ों में बदलकर दफनाने का उनका कथित सपना धरा-का-धरा ही रह गया. 14 लाख करोड़ रुपयों में से 10 लाख करोड़ तो अभी तक बैंकों में जमा हो चुके हैं, बैंकों की मिलीभगत से नकली नोटों के भी खपने का हल्ला है. बचे 4 लाख करोड़ भी बैंकों की तिजोरियों में समा जायेंगे -- अभी 25 दिन और है.
इससे दो बाते साफ़ हैं. एक, यदि नोटों के रूप में लोगों ने काला धन दबाकर रखा हुआ है, तो नोटबंदी कोई कारगर उपाय नहीं था. दो, काला धन नोटों के रूप में नहीं है, बल्कि वह तो परिसंपत्तियों के रूप में सुरक्षित है, जिस पर नोटबंदी का कोई असर नहीं होना था. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, हमारे नोटों के मुद्रा-मूल्य का केवल 5-6% ही नोटों में काला धन है और इसका मूल्य लगभग 1 लाख करोड़ रूपये ही है.
इसलिए नोटबंदी काले धन पर कोई 'सर्जिकल स्ट्राइक' नहीं बनी, लेकिन 125 करोड़ जनता के जीवन और देश की अर्थव्यवस्था के खिलाफ 'युद्ध' जरूर साबित हुई. जो लोग कतारों में नहीं लगे थे, उन्होंने 'कतारों की कुछ परेशानियों' को झेलने का उपदेश दिया. खाए-पिए-अघाए लोगों ने कुछ दिन 'भूखे रहने' का प्रवचन दिया. जिनके पास 'काला धन' था, वे उसे 'सफ़ेद' करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ दहाड़ते रहे. जिनके पास कुछ नहीं था, वे भी 'अच्छे दिनों की आस में' मोदी की ओर निहार रहे हैं. मोदी उन्हें बता रहे हैं कि अपने 'दुर्भाग्य' के साथ जिस देश में उन्होंने जन्म लिया है, वहां वे देशवासियों को 'आखिरी बार' इसलिए लाइन में लगवा रहे हैं कि उनके 'दुर्भाग्य' को 'सौभाग्य' में बदल सके और फिर कभी उन्हें पूरी जिंदगी स्वर्गारोहण के लिए लाइन न लगानी पड़े.
तो हमारा यह 'बब्बर शेर' काले धन के खिलाफ दहाड़ रहा है और बता रहा है कि जनधन खाते में चमरू ने किसी चोर का पैसा जमा कर दिया है. अब कानूनन, न चोर बचेगा, न गरीब. लेकिन वो रात-दिन एक कर रहे हैं कि किस तरह यह 'भ्रष्ट' पैसा चमरू का हो जाए. यदि कोई चोर गरीबों से पैसा मांगे, तो देना नहीं, केवल एक पोस्ट कार्ड मोदी को लिख दें -- "प्रति, प्रधानमंत्री, नई दिल्ली" के नाम से. समझो, चोर की शामत और गरीब मालामाल !
हां, याद आया. अरविंद केजरीवाल ने भी की थी पोस्टकार्ड लिखने की तकरीर. अब पता नहीं, दिल्ली के कितने लोगों ने केजरीवाल को लिखे ऐसे कार्ड और कितने अंदर हुए? लेकिन कोई अंदर हुआ हो या नहीं हुआ हो, केजरीवाल जरूर सत्ता की सीढ़ी चढ़ गए. तो 'पोस्टकार्ड आह्वान' सत्ता में पहुंचने का मंत्र बन गया है. लेकिन मोदी तो पहले ही सत्ता-शीर्ष पर है. कौन करेगा उन्हें बेदखल -- संघी गिरोह? लेकिन नोटबंदी के लिए तो भागवत महाराज पहले ही मोदी की पीठ थपथपा चुके हैं. फिर कौन -- जनता?? शायद हां. तभी तो भ्रष्टों का पैसा गरीबों में बांटने की घोषणा हो रही है. मोदी विदेश से काला धन लाकर 15-15 लाख रूपये देने में कामयाब तो नहीं हुए, शुद्ध देशी माल तो जनधन खातों में डलवा रहे हैं.
लेकिन यह क्या? थोड़ा फर्जीवाड़ा जनधन योजना की वेबसाईट में भी कर लेते, तो भी कौन पूछता? आखिर आंकड़े है, आंकड़ों में हेर-फेर करने की पुश्तैनी परंपरा है ! लेकिन मोदी ठहरे ईमानदार. वेबसाईट बता रही है कि कुल 25.78 करोड़ जनधन खातों में से 5.89 करोड़ खातों में 8 नवम्बर तक कोई पैसा ही नहीं था. 30 नवम्बर तक भी इन 'जीरो बैलेंस' वाले खातों में से केवल 0.76% खातों या 4.47 लाख खातों में ही पैसे डाले गए हैं. याने नोटबंदी के पहले जो 5.84 करोड़ लोग कंगाल थे, वे नोटबंदी के बाद भी कंगाल ही रह गए, क्योंकि कोई 'काला चोर' उनके खातों में पैसा जमा करने नहीं आया. तो आज तक 19.89 करोड़ जनधन खातों में लगभग 75000 करोड़ रूपये ही जमा हुए हैं -- औसतन एक खाते में लगभग 3700 रूपये. इन खातों में पहले भी कुछ पैसे रहे होंगे, नोटबंदी के बाद कुछ डले भी होंगे. लेकिन आज मोदी इन गरीबों को बता रहे हैं कि ये पैसे चोरी के हैं और इसलिए अपने खातों से उसे न निकलवाये. लेकिन वे इन पैसों को गरीबों को सौंपने के लिए नींद जरूर खराब कर रहे हैं.
शाबास मोदी, गरीबों के खातों में 75000 करोड़ रूपये रहे तो वह चोर ! साहूकार बैंकों का 11 लाख करोड़ रूपये भी डकार जाए, तो वे ईमानदार !! इन्हीं ईमानदारों के लिए फिर 50-50% वाली योजना भी !!!
तो मित्रों, हमारे गरीबों को अपने खातों में 3-4 हजार रूपये रखने का भी अधिकार नहीं है. इसकी जुर्रत करोगे, तो चोर कहलाओगे. वैसे मनुस्मृति भी कहती है कि शूद्रों को धन और संपत्ति रखने का अधिकार नहीं है. नोटबंदी के अभियान से सावधान हो जाओ, संघ-भाजपा के 'हिन्दू राष्ट्र' में जब 'मनुस्मृति' संविधान बनेगी, तो इतने पैसे भी तुम्हारे अपने न होंगे !!

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