Friday 2 December 2016

अधिकांश नेता करोडपति क्यों होते हैं?

'एडीआर' की एक दिलचस्प रिपोर्ट है, जिसके अनुसार:
-- 34% नेताओं के अपने खुद के धंधे होते है, याने 'नेतागिरी' इनका साइड बिज़नेस होता है, जो मुख्य धंधे को बढाने में सहायक होता है. इस मुख्य धंधे में आप 'काले धंधे' को भी शामिल कर सकते हैं.
-- 44% लोग नेतागिरी करने के बाद करोडपति हो जाते हैं.
-- 72% नेता सत्ता में आने के बाद याने किसी पद में निर्वाचित होने के बाद करोडपति हो जाते है. याने नेतागिरी और ऊपर से पद -- इनके करोड़पति बनने की संभावना को बढ़ा देता है.
-- वर्ष 2006-16 के दौरान 8163 उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 1.57 करोड़ रूपये थी -- याने भारतीय जनतंत्र में कोई करोड़पति ही चुनाव लड़कर जीतने की उम्मीद कर सकता है.
-- अभी निर्वाचित लोकसभा और राज्यसभा के 596 सांसदों की औसत संपत्ति 5.45 करोड़ रूपये है -- याने किसी भी तरह से चुनाव जीतो, आपकी संपत्ति पांच गुना बढ़ाने की गारंटी ! 'मनरेगा' की तरह यह 'मजदूरी नकार गारंटी' तो नहीं है यह !!
-- विधायकों में से 1258 विधायकों का अपना अलग धंधा है, जो विधायकी के साथ बेलगाम फलता-फूलता है.
ऐसे नेताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों में श्रीमान मोदी सहित भाजपा के महानुभाव भी शामिल हैं. भगोड़ा माल्या भी इन्हीं की पैदावार है. मित्रों, इनके काले धन और काले धंधे पर 'नोटबंदी' का कोई असर पड़ा है?

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