Thursday 25 May 2017

'हिन्दू राष्ट्र' के हवन कुंड में "आदिवासी स्वाहा" के लिए कल्लूरी का आमंत्रण....


"दिल्ली में बैठकर कोई बस्तर की समस्या को नहीं समझ सकता. इसके लिए दिल्ली में बैठे जिम्मेदार लोगों को बस्तर में जाने की जरूरत है." -- ये कहना था आईजी एसआरपी कल्लूरी का दिल्ली के जन संचार संस्थान (आइआइएमसी) में. दिल्ली के 'नासमझों' को बस्तर से चलकर यही समझाने आये थे वे, लेकिन प्रचार तो ऐसा था जैसे वे नक्सलियों के 'शहरी नेटवर्क' का पर्दाफ़ाश करने जा रहे हैं. लेकिन खोदा पहाड़, निकली चुहिया!! उनके भाषण का न तो उनके विषय से कोई संबंध था, न ही उनकी कथनी-करनी से. वैसे ये सवाल भी पलटकर पूछा जा सकता है कि बस्तर में बैठकर दिल्ली के नेटवर्क को समझने की उनमें कितनी अक्ल है?
लेकिन बस्तर दौरे का आमंत्रण नंदिनी सुन्दर या अर्चना प्रसाद के लिए नहीं है, क्योंकि न ही वे "बैठे" हैं और न ही "जिम्मेदार". 'दिल्ली में बैठे जिम्मेदार लोगों' की पहचान भी रमनसिंह के साथ मिलकर कल्लूरी ही करेंगे. पहचाने वही जायेंगे, जो रमन-कल्लूरी के दिखाए को देखेंगे, जो उनके कहे को सुनेंगे और जो उनके सुनाये को बतायेंगे. इसलिए उनकी पहचान उस संघी गिरोह के बाहर नहीं हो सकती, जो आजकल सेक्स रैकेट चलाने के नाम पर प्रसिद्धि पा रहे हैं. पिछले दिनों कन्हैया कुमार के मामले में उन्होंने नाम कमाया था. आजकल अरूंधती रे और शहला राशिद को गाली-गलौज करने में पूरे नंगे हो रहे हैं. देश का सवाल है और उसकी भक्ति का भी. देशभक्ति के लिए नंगे होने में कोई हर्ज़ नहीं है. इसी 'देशभक्ति' को दर्शाने के लिए कल्लूरी ने महिलाओं को 'फ़क यू' का संदेशा भिजवाया था. ये देश हिन्दुओं का है और उनकी रक्षा करने के लिए 'राष्ट्रविरोधियों' को 'फक' करना उनका पूरा-पूरा संवैधानिक अधिकार है!!!
तो बस्तर में जाने की इज़ाज़त केवल 'राष्ट्र भक्तों' को ही मिल सकती है. पहले 'राष्ट्र भक्त' है एबीवीपी के अध्यक्ष सौरभ कुमार, जिन्होंने कल्लूरी से प्रेरणा ली है और बस्तर की समस्या को समझने के लिए वहां कूच कर गए हैं. अब वे क्या समाधान खोदकर लाते हैं, यह तो बाद की बात है, लेकिन लगे हाथों जेएनयू में भाषण पेलने का निमंत्रण दे आये है. आखिर, हिन्दू संस्कृति में आमंत्रण का जवाब निमंत्रण ही तो होता है.
तो कल्लूरी, अबकी बार चूकना मत. तुम्हारे हाथ में सबूत हो या न हो, न हो तो फर्जी सबूत गढ़ने की पुलिसिया ट्रेनिंग का इस्तेमाल करना, लेकिन नंदिनी सुन्दर और अर्चना प्रसाद को गिरफ्तार करके जरूर लाना. अपनी वर्दी पर एकाध मैडल टांगना हो तो जीप की बोनट पर बांधकर लाना. 'राष्ट्र विरोधियों' से निपटने का एक नायाब तरीका हमारे देश की सेना ने खोजा है. उसका इस्तेमाल करना हर राष्ट्रभक्त 'ठोले' का कर्तव्य है. जब तक दिल्ली में ये बने रहेंगे, किसी आयोग, किसी कोर्ट या किसी ब्यूरो की उछलकूद जारी रहेगी.
मत चूकना कल्लूरी. इलाके बदलने से इरादे नहीं बदलते, इसे फील्ड में भी दिखाना होगा. इरादे नहीं बदलने वाले ही उंचाईयों पर चढ़ते हैं. टाटा-बिडला-अडानी-अंबानी-जिंदल की सेवा ही 'राष्ट्र की सेवा' है. 'राष्ट्रभक्ति' का तकाज़ा है कि सभी आदिवासियों को माओवादी बताओ, आदिवासियों और उनके अधिकारों की बात करने वालों को माओवादियों के शहरी नेटवर्क का हिस्सा बताओ. जो इस 'बताओ अभियान' में बाधा डाले, ऐसे 'देशद्रोहियों' को कीड़े-मकोड़ों की तरह मसल देना चाहिए. जो आदिवासियों के जीवन की बात करें, जो उनके लिए बनाए गए कानूनों के पालन की बात करें, जो जवानों पर हत्या-बलात्कार-आगजनी के आरोपों का सबूत जुटाए, वे आखिर 'राष्ट्रभक्त' कैसे हो सकते हैं? ऐसे लोगों को गोलियों से उड़ा देना चाहिए. इन्हें सबक सीखाना राष्ट्रभक्तों का 'परम कर्तव्य' हैं.
मत चूकना चौहान. मौका सुनहरा है मोदी-राजनाथ-जेटली-रमन की नज़रों में चढ़ने का. जेएनयू 'राष्ट्रद्रोहियों' का सबसे बड़ा गढ़ है. इस पर जो हमला करेगा, संघी गिरोह की नज़रों में उतना ही चढ़ेगा. इस चढ़ाई पर पूरी दुनिया की नज़र पड़ेगी. न भी पड़े, तो ट्रम्प की तो जरूर पड़ेगी. आखिर हमारे मोदी सहित पूरी दुनिया के बादशाह उसकी नज़रों में चढ़ने को बेताब हैं. ट्रम्प की नज़र पड़ी, तो शायद काबिलियत को पहचान ले और अपनी पुलिस का ही सरताज बना दे. हम भी गर्व से कह सकेंगे, बस्तर का अनुभव पूरे अमेरिका को रास्ता दिखा रहा है.
और हां, दिल्ली में बैठी सुप्रीम कोर्ट को न छोड़ना. इसी 'राष्ट्रविरोधी' संस्था ने 'सलवा जुडूम' के मंसूबों को ध्वस्त किया है. उस मानवाधिकार आयोग को भी मत छोड़ना, जिसने बलात्कारों के खिलाफ आदिवासी-पीड़ा को जबान दी. और उस सीबीआई को तो छोड़ना ही मत, जिसने रमन-मोदी के प्रति 'भक्ति' निभाने के बजाये ताड़मेटला के धुएं को पूरे देश में फैलाने का 'राष्ट्र विरोधी' काम किया. आखिर हमारी बिल्ली, हमसे ही म्याऊं!! उस 'राष्ट्र विरोधी' एडिटर्स गिल्ड को भी मत छोड़ना, जिसने कल्लूरी-राज में पत्रकारों के दमन पर अपनी मुहर लगाई है. इन सबको जेएनयू में ही देख लेने का मौका सौरभ हमें दे रहे हैं. हे सौरभ, ऐसे विरल मौके दिलाने के लिए तुमको शत-शत नमन!!!
मत चूकना कल्लूरी. इस देश की सभी राष्ट्रविरोधी संस्थाओं को ध्वस्त करना है.इनका विनाश ही इस देश के आदिवासी-दलितों को उनकी औकात बताएगा. नंदिनी-अर्चना की अक्ल को ठिकाने लगायेगा. आइआइएमसी में जो हवन जलाया गया है, उसमें इन सबको स्वाहा करना है. "स्वाहा-स्वाहा" का यह खेल ही 'हिन्दू राष्ट्र' का निर्माण करेगा. आओ, मौका अच्छा है. 'हिन्दू राष्ट्र' के हवन कुंड में "स्वाहा-स्वाहा" करते अपने हाथ सेंक लें और जेब भी.

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